అజరామర
సూక్తి – 333
अजरामर सूक्ति – 333
Eternal Quote – 333
विषस्य
विषयाणाञ्च दूरमत्यन्तमन्तरम् ।
उपभुक्तं
विषं हन्ति विषयाः स्मरणादपि ॥ -
(बहिरंगयोग – पृ. 49 )
విషశ్చ విషయాణాఙ్చ దూరమత్యన్తమంతరం l
ఉపభుక్తం విషం హన్తి విషయః స్మరనాదపి ll (బహిరంగ యోగము – పుట 49)
‘విషయము’ లోతుగ జూచిన
విషమయమది తలచినంత వేగమె మదినిన్
పాషాణ మయమొ నర్చుచు
విషదింపగ జేసి తనువు వీడగజేయున్
‘विष విషము' మరియు 'విషయము' (' (Sensual Pleasure) అనే పదానికి మధ్య
వ్యత్యాసము గణనీయమైనది. ‘విషము’ వినియోగపరచితే చంపుతుంది; ‘విషయము’
దాని గురించి అదే అదే పదే పదే ఆలోచించడం
ద్వారా కూడా చంపుతుంది.
ఈ శ్లోకము పతంజలి యొక్క ‘అష్టాంగాయోగము’ లోని ‘బహిరంగ యోగము’
నుండి తీసుకొనబడినది. యమ, నియమముల గూర్చి తెలియజేస్తూ, పతంజలి, ‘విష విషయ విభేదమును గూర్చి తెలియజేస్తున్నాడు.' ఒక వ్యక్తి, విషాన్ని మింగటమో లేక
తినటమో చేస్తే అది ప్రాణాంతకము. అయితే ఇంద్రియ నిగ్రహము పాటించక ఒక
వస్తువు, అది స్త్రీ కావచ్చు మరేదయినా కావచ్చు, నిరంతరము ఆలోచించుట కూడా
ఆవ్యక్తి వినాశనానికి దారితీస్తుంది.
'విషము' 'విషయము'
అనే రెండు పదాలు ఉచ్చరించినప్పుడు దాదాపు ఒకేలా ఉంటాయి. ఉచ్చారణలో
వ్యత్యాసం ఒకే అక్షరం మాత్రమే. కానీ వాని గుణగణాలకు చాలా వైవిధ్యం ఉంది.
ఇటీవలి రోజుల్లో, రద్దీగా
ఉండే ప్రదేశంలో కరోనా వైరస్ బారిన పడే ప్రమాదం ఉన్నప్పటికీ, మధ్య
విక్రయ శాలల ముందు బీరులకై బారులు తీరుతాడు. కావున విషయ లౌల్యము అన్నది కనిపించని
జీవియినప్పటికీ అది ప్రాణాంతకము.
विषस्य
विषयाणाञ्च दूरमत्यन्तमन्तरम् ।
उपभुक्तं
विषं हन्ति विषयाः स्मरणादपि ॥ - (बहिरंगयोग – पृ. 49 )
शब्द 'विष' (जहर) और 'विषय ' (Sensual Pleasure) के बीच का अंतर पर्याप्त है। 'विष’ खाने से आदमी मारता है; 'विषय' सिर्फ याद करने या सोचने से ही मरता है।
यह श्लोक 'बहिरंग योग ' कृति से है। यह महर्षि पतंजलि के 'अष्टांग योग' नामक एक प्रसिद्ध ग्रंथ से लियागया है। अष्टांग योग से संबंधित 'यम, नियम ' आदि की व्याख्या करते हुए, 'ग्रंथकार' कहता है कि विष व जहर और 'विषय' (इंद्रियों की वस्तुएं), हालांकि ध्वनि तो समान हैं, लेकिन बहुत अलग हैं उनके अर्थ। जहर का सेवन करने से आदमी जब का जब मरजाता है l जबकि इंद्रियों के विषय के बारे में लगातार सोचने से ही बस व्यक्ति का विनाश हो सकता है।
'विष' शब्द का अर्थ जहर है जबकि 'विषय' शब्द का अर्थ है इंद्रियों की वस्तु। दोनों शब्द 'विष' और 'विषय' उच्चारित होने पर लगभग एक जैसे लगते हैं। उच्चारण में अंतर आखिर केवल एक शब्दांश का है। लेकिन उनकी विशेषताओं में एक बहुत बड़ा अंतर है। विष थो पीनेसेही जान लेनेका प्रयास करता है,
लेकिन विषय बिना पिए धीरे धीरे जान लेलेती है l
अब विष का अर्थ पाठक को समझ में आया होता। अब थोड़ा विषय इ बारेमे सोचेंगे l विषय को एक
उदाहरण के जरिए बतानेका कोशिश करता हूँ l उदाहरण के लिए, आंखों के लिए सुंदर या वांछनीय दृश्य, मनमोहक ध्वनियाँ / कानों के लिए संगीत, जीभ के लिए स्वादिष्ट स्वाद, नाक के लिए सुखद गंध और त्वचा के लिए प्यारा स्पर्श। इ प्पूरे मनको लुभाने वाले चीज है l
सेवन की कोइ जरूरत नहीं l
अब जबकि विष और विषय, जो समान ध्वनि वाले शब्द हैं, के अर्थ स्पष्ट हो गए हैं, तो 'सुभाषिता' के अर्थ की सराहना करना आसान हो जाएगा।
'विषा' के सेवन से व्यक्ति की मृत्यु हो सकती है। हालांकि, इसका सेवन किए बिना इसे देखने, या अपने हाथों में पकड़ने, या इसके बारे में दूसरों को बोलनेमे या दूसरों से सुनने में कोई बुराई नहीं है। जब तक इसका स्वाद नहीं लिया जाता है, अर्थात आंतरिक रूप से सेवन किया जाता है, तब तक यह उस पर असर नहीं डालता है। लेकिन 'विषय' के साथ ऐसा नहीं है। इसके विपरीत गुण ए है, यह व्यक्ति को बहुत याद या उसके बारे में सोचने पर प्रभावित करता है। उदाहरण के लिए, यदि कोई गहनों के बारे में सोचता है, तो उसे छूना, देखना, पकड़ना, उसके बारे में विवरण सुनना और जाहिर है, उसे सूंघना या चखना भी नहीं है। विचार ही व्यक्ति को अपनी गिरफ्त में ले सकता है। यदि उसकी 'वासना' अर्थात् अन्तर्निहित प्रवृत्तियाँ ऐसी हों, तो उसका पूरा दिन, सप्ताह या वर्ष बीत सकता है, और अंत में जान लेलेता है l क्योंकि वह उस वस्तु को प्राप्त करने में ही लगा रहता है। वास्तु कि
प्राप्ती नहीं हुई तो उस वेदना ही उसका प्राण-घातुक होसकता है l कुछ लोग एक विशेष खाने के जोड़ तक पहुंचने के लिए मीलों दूर तक जाते हैं क्योंकि कुछ विशेष खाद्य पदार्थों के स्वाद के कारण जो भोजन संयुक्त परोसते हैं। वह व्यक्ति अपनी भूख को संतुष्ट करने के लिए नहीं बल्कि अपनी लालसा को पूरा करने के लिए उस दूरी की यात्रा करता है। हमने देखा है कि भीड़-भाड वाली जगह पर कोरोना वायरस से प्रभावित होने के खतरे के बावजूद, शराब की दुकानों के बाहर लोगों की एक बोतल या दो पसंदीला पेय लेने के लिए भीड़ होती है। 'विषय' के आगे झुककर कोई कितना हताश हो सकता है? ऐसे व्यक्ति का मन अपनी इच्छा की वस्तु को प्राप्त करने के विचार में पूरी तरह व्यस्त रहेगा। ऐसी है इन्द्रिय वस्तु की शक्ति ।
यहां तक कि उस व्यक्ति के सामने शारीरिक रूप से उपस्थित हुए बिना, वह उसे एक दुष्चक्र के माध्यम से मुश्किल से किसी भी मोघा (Outlet) के माध्यम से ले जा सकता है। इसलिए, 'ग्रंथकार' कहता है, विष से भी अधिक खतरनाक हैं विषय।
आध्यात्मिक रूप से कहें तो, जो चीज चेतन है, उसे किसी भी निर्जीव के लिए लालायित या शिकार नहीं होना चाहिए, अर्थात हमारे ज्नानेंद्रिय और बाह्येंद्रिय के लालच में हम नहीं आना चाहिए। हम सभी निश्चित रूप से जानते हैं कि सांसारिक वस्तुओं को प्राप्त करने की इच्छा का कोई अंत नहीं है। क्या 'विषय' व ‘वासना’सच्चे आनंद से ध्यान भटकाने का एकमात्र रूप नहीं है? कम से कम इस पर हम नियंत्रण रखें, अगर इसे पूरी तरह से दूर नहीं किया जाए।
viṣasya viṣayāṇāñca dūramatyantamantaram ।
upabhuktaṃ viṣaṃ hanti viṣayāḥ smaraṇādapi
॥ - (Bahiranga yoga – 49)
The disparity between 'viṣa' (poison) and 'viṣaya'
(object of sense) is enormous. viṣa (Poison)
kills on consumption; viṣaya kills just by
reminiscing.
In Sanskrit, the words for
'poison' and 'objects of sense', sound almost similar. Poison is called viṣa, while sense objects are called viṣaya. The disparity in pronunciation is after all only
one syllable, but their attributes have a ginormous divergence! They couldn't
differ from each other more!
Viṣa kills upon consumption. One can safely hold it, see
it, hear about it or sometimes smell it. It kills only when tasted. Viṣaya, on the contrary, kills at the very recollection or
thought of it!! For example, if one
thinks of a piece of jewelry, he does not have to touch it, see it, hold it,
hear the details about it and obviously, smell or taste it either. The very
thought can entrap the person in its grasp! If his vāsanas (inherent
tendencies) are such, then his entire day, week or years can go by, because he
is caught up in acquiring that article. Such is the power of a sense object.
Even without being physically present in front of the person, it can take him
through a vicious trap with barely any outlet. Hence, the poet says, viṣayas are far more hazardous than even poison!!
Let not the materials
possess you in your quest to possess the materials. Viṣaya is the only form of distraction from true bliss!
Find your way to your bliss.
స్వస్తి.
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